सोमवार, 22 दिसंबर 2014

बहुत व्यापक है आयुर्वेद

आयुर्वेद इस भूमण्डल में स्वास्थ्य एवं रोग निवारण के ज्ञान
का सर्वप्रथम स्रोत है। वैसे तो यह ज्ञान प्रकृति की उत्पत्ति के
साथ ही उत्पन्न हुआ, लेकिन इसका नामकरण भगवान
धन्वन्तरि जी द्वारा किया गया। भगवान धन्वन्तरि ने
चिकित्सा को दो भागों में विभक्त किया-
औषधि चिकित्सा और शल्य चिकित्सा। आयुर्वेद का ज्ञान
बहुत ही विशाल है। इसमें ही ऐसी प्रणाली का ज्ञान है,
जो मानव को निरोगी रहते हुए स्वस्थ लम्बी आयु तक जीवित
रहने की लिये मार्ग प्रशस्त कराता है,
ताकि प्राणी सारी उम्र सुख शान्ति व निरोगी रहकर लम्बे
समय तक अपना जीवन यापन कर सके। मानव हित व अहित किसमें
है,अायुर्वेद इसका ज्ञान कराता है। यह पांचवां वेद है।
पांचों वेदों में सर्वप्रथम यही है, जो प्राणी के स्वास्थ्य
की रक्षा करने की कला का ज्ञान कराता है। आयुर्वेद में
जड़ी-बूटी-भस्म, तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र, ज्योतिष
आदि को दर्शाया गया है। ये इसके ही अंग-प्रत्यंग हैं। ऐसा कोई
रोग नहीं है, जिसको आयुर्वेद ने न दर्शाया हो। यहां तक
कि कैन्सर एवं एड्स जैसे भयानक रोगों के लक्षण एवं उनके उपचार
की प्रक्रिया को भी आयुर्वेद में बताया गया है। मिरगी दौरे
जैसे असामान्य माने जाने वाले रोग की इसमें सफल
चिकित्सा का ज्ञान कराया गया है।
आयुः कामयमानेन धर्मार्थ सुखसाधनम्
आयुर्वेदो देशेषु विधेय परमादरः।।
अर्थात धर्म, अर्थ एंव काम नामक पुरुषार्थों का साधन आयु
ही है। अतः आयु की कामना करने वाले को आयुर्वेद के
प्रति सत्य निष्ठा रखते हुए इसके उपदेशों का पालन
करना नितान्त आवश्यक है।
इस पृथ्वी की रचना के साथ ही ब्रह्मा जी ने प्राणियों के
स्वास्थ्य की रक्षा के लिये जड़ी-बूटियों के रूप में आयुर्वेद के
ज्ञान को प्रसारित किया। ताकि उनके बनाये प्राणि स्वस्थ
बने रहें। वैसे तो चारों वेद अनन्त काल से हैं, लेकिन
मेरा मानना यह है कि इन चारों वेदों से भी पूर्व आयुर्वेद
स्थापित हुआ और कुछ समय पश्चात आवश्यकता के अनुसार
प्रकाण्ड विद्वानों ने अपने-अपने अनुसन्धान के माध्यम से
आयुर्वेद को आठ भागों मे विभक्त कर दिया। जैसे- काय
चिकित्सा, बाल तन्त्र, भूत विद्या, शल्य चिकित्सा, स्पर्श
चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा,रसायन तंत्र (आयुवर्धक एवं
निरोगी शरीर का ज्ञान) और बाजीकरण चिकित्सा।
वास्तव में जितनी भी पाश्चात्य चिकित्साएं हैं, ये
सारी की सारी निकली इसी से हैं।
सभी चिकित्सा पद्धतियों की जननी आयुर्वेद ही है।
नाड़ी ज्ञान केवल आयुर्वेद की ही देन है। इसमें वैद्य
रोगी की नाड़ी को पकड़ कर ही उसके शरीर के अन्दर व्याप्त
रोगों का वर्णन कर देता है। चिकित्सा का प्रयोजन
रोगी को रोग से शान्ति दिलाना है। परन्तु आयुर्वेद कहता है
कि रोगी को रोग से शान्ति तो होनी ही चाहिये साथ
ही प्राणी के स्वास्थ्य की रक्षा कैसे की जाये, इसका ज्ञान
भी आयुर्वेद कराता है। ताकि प्राणी जीवनपर्यन्त निरोगी रह
कर आनन्द पूर्व जीवन बिता सके।
यह बात अवश्य ध्यान में लावें
कि जितनी भी चिकित्सा पद्धतियां हैं, उन सभी में केवल
आयुर्वेद ही यह ज्ञान देता है कि यदि आयु है तो उसकी रक्षा,
संवर्धन, संरक्षण करते हुए कैसे आनन्दपूर्वक जीवन बिताया जाये।
इसीलिये आयुर्वेद का ज्ञान तथा आयुर्वेद दवाओं
की उपयोगिता अति आवश्यक है। 

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