शनिवार, 20 दिसंबर 2014

दाँतों में से खून निकलता हो तो (PYORRHOEA) -----------

* नीबूं का रस मसूड़ों को रगड़ने से आराम होगा ।
कपूर:
पायरिया होने पर कपूर का टुकड़ा पान में रखकर खूब चबाने और
लार एवं रस को बाहर निकालने से पायरिया रोग खत्म होता है।
देशी घी में कपूर मिलाकर प्रतिदिन 3 से 4 बार दांत व मसूढ़ों पर
धीरे-धीरे मलने और लार को बाहर निकालने से पायरिया रोग
ठीक होता है।
सरसों का तेल:
60 मिलीलीटर सरसों के तेल में लहसुन पीसकर गर्म करके इसमें 30
ग्राम भुनी हुई अजवायन और 15 ग्राम सेंधानमक मिलाकर मंजन
करें। इससे प्रतिदिन मंजन करने से दांतों के सभी रोग ठीक होते हैं।
2 से 3 महीने इसका प्रयोग करने से पायरिया ठीक होता है।
फिटकरी:
10 ग्राम नमक और 20 ग्राम फिटकरी बारीक पीसकर मसूढ़ों पर
दिन 3 बार मलने और 1 गिलास गर्म पानी में 5 ग्राम
फिटकरी मिलाकर कुल्ला करने से मसूढ़े व दांत मजबूत होते हैं। इससे
मसूढ़ों की सूजन, दांतों का दर्द, खून व मवाद
निकलना आदि ठीक होता है।
लौंग :
5 से 6 बूंद गर्म पानी में लौंग का तेल 1 गिलास गर्म पानी में
मिलाकर प्रतिदिन गरारे व कुल्ला करने से पायरिया रोग नष्ट
होता है।
दाँतों को मजबूत बनाने के लिए
* महीने में २-३ बार रात को सोते समय जरा सा नमक और
सरसों का तेल मिलकर दाँतों को रगड़ दे ।
* देशी गाय का गौमूत्र ३-४ बार कपड़े से छान कर कोई मुंह में भरे
और अच्छी तरह कुल्ला करें फिर थूक दे ... फिर भरे ...ऐसा ४-५ बार
करें ....फिर साफ पानी से मुंह धो लें | उस
आदमी को कभी dentist के पास नहीं जाना पड़ेगा | बुढ़ापे में
भी दांत मजबूत रहेंगे | चौखट नहीं लगवानी पड़ेगी |
दांतों के लिए
दातौन के अतिरिक्त दंतमंजन का भी उपयोग
किया जा सकता है। इसके लिए सोंठ, काली मिर्च, पीपर, हरड़,
बहेड़ा, आँवला, दालचीनी, तेजपत्र तथा इलायची के समभाग चूर्ण
में थोड़ा-सा सेंधा नमक तथा तिल का तेल मिलाकर 'दंतशोधक
पेस्ट' बनायें। कोमल कुर्विका से अथवा प्रथम उँगली से
मसूड़ों को नुकसान पहुँचाये बिना दाँतों पर घिसें। इससे मुख
की दुर्गन्ध, मैल तथा कफ निकल जाते हैं एवं मुख में निर्मलता, अन्न
में रूचि तथा मन में प्रसन्नता आती है।
दंतधावन के उपरान्त जिह्वा निर्लेखनी से जिह्वा साफ
करनी चाहिए। इसके लिए दातौन के दो भाग करके एक भाग
का उपयोग करें।
दिन में दो बार दंतधावन करें। भोजन के बाद
तथा किसी भी खाद्य-पेय पदार्थ के सेवन के बाद दाँतों व
जिह्वा की सफाई अवश्य करनी चाहिए।
गण्डूष धारण (कुल्ले करना)- द्रव्यों को मुख में कुछ समय रखकर
निकाल देने को गण्डूष धारण करना कहते हैं। त्रिफला चूर्ण रात
को पानी में भिगो दें। सुबह छानकर इस पानी से कुल्ला करें।
दंतधावन के बाद गण्डूष धारण करने से अरूचि, दुर्गन्ध,
मसूड़ों की कमजोरी दूर होती है। मुँह में हलकापन आता है। गुनगुने
तिल तेल से गण्डूष धारण करने से स्वर स्निग्ध होता है। दाँत व मसूड़े
वृद्धावस्था तक मजबूत बने रहते हैं। वृद्धावस्था में भी दाँत देर से
गिरते हैं।

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